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मरी हुई चेतना के समाज में रहना मतलब नरकतुल्य जीवन जीना !
क्या मोदिजी और योगीजी ऐसे ही मरी हुई चेतना के समाज को
फिरसे जागृत करने का जी तोड
प्रयास कर रहे है ?
और उनके प्रयासों से क्या ऐसे
चेतनाशून्य समाज की फिरसे
चैतन्यजागृती हो रही है ?
जी हाँ ! ऐसा ही हो रहा है !

युगपुरुष ,महापुरुष ,सिध्दपुरूष ,महासगिध्दयोगीयों का यही कार्य होता है ! और ऐसा निस्वार्थ भाव का कार्य वायुगती से संपूर्ण ब्रम्हाड में फैलता भी है !

विश्व स्वधर्म सुर्यै पाहो
अर्थात
विश्व विजेता हिंदू धर्म
यह मेरा कार्य भी वायुगती से मगर योजनाबध्द तरीकों से और गुप्त निती से हरदिन आगे ही बढ रहा है !
कृष्णअवतारी ज्ञानेश्वर महाराज की भी यही इच्छा है !

जय श्रीकृष्ण !

विनोदकुमार महाजन

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