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मैं मेरी इच्छा से नहीं जीता हूं ! बल्कि हरसमय ईश्वर की इच्छा से ही जीता हूं !
इसीलिए सुख में भी आनंदी रहता हूं !
और दुख में भी आनंदी रहता हूं !
आखिर मेरा है क्या ?
कुछ भी नहीं !
सबकुछ ईश्वर का ही है !
सुख भी और दुख भी !
अमृत भी और जहर भी !
पुण्य भी और पाप भी !
जन्म भी और मृत्यु भी !
पुर्वजन्म भी पुनर्जन्म भी !

ना पंचमहाभूतों का देह मेरा है !
ना ब्रम्हस्वरूप आत्मा मेरा है !

सबकुछ ईश्वर का है !
मेरी श्वास भी उसी की ही है !

इसीलिए सबकुछ ईश्वर के चरणों में समर्पित है !
मैं तो निमित्त मात्र !
कर्ताकरविता ईश्वर !

जय श्रीकृष्ण !!

विनोदकुमार महाजन

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